Monday 23 September 2013

तंत्र चले न मंत्र

भारत विचित्रताओं से भरा देश है इतना विचित्र की विचित्रता को भी आश्चर्य हो जाए | भारत की आबादी 121 करोड़ है और दुनिया का सबसे ज्यादा यूथ भारत में ही हैं | विश्व की लगभग 15 प्रतिशत आबादी और केवल विश्व के 2.4 प्रतिशत में सिमटा भारत | भारत के रिसोर्स सीमित , पानी सीमित , जमीन सीमित , खाद्यान सीमित जबकि आबादी दिनों दिन बढती जा रही है | कुल मिला कर यहाँ जनसँख्या की फ़ौज है जहाँ तक नज़र आये बस जनता जनता और जनता | विकसित देशों की एक बड़ी समस्या वहां की कम जनसँख्या व यंग लोगों का नहीं होना हैं , इसलिए वहाँ मैनपावर की कमी से निपटने के लिए तीसरी दुनिया के लोगों को मौका दिया जाता है | वहां हर आदमी आत्मनिर्भर है और अर्थव्यवस्था में अपना योगदान करता है | जबकि भारत के अधिकांश लोग केवल दूसरों पर बोझ बने हुए हैं | हालाँकि महंगाई और संसाधनों की कमी को देखते हुए आज अधिकतर लोगों में रोजगार करने की भावना आई है परन्तु क्या काम ? हमारे लोग जो पढ़े लिखे हैं मेहनत नहीं करना चाहते और जो कम पढ़े लिखे है वो भी केवल उतना काम करना चाहते हैं कि घर का खर्च निकल जाए |
                ऐसा नहीं है कि भारत में रोजगार के अवसर नहीं बढे पर आर्थिक विकास और औद्योगिकीकरण से मिलने वाली नौकरीयाँ तो सीमित ही है | एक पहलु यह भी है कि जिस तरह आज का युवा नौकरी के लिए परेशान है तो बड़े कार्पोरेट हाउस और एम एन सी का भी वेलुएबल ह्यूमन रिसोर्स के लिए यही हाल है | ये कंपनियां न्यू रिक्रूट को ट्रेन करने और उनको इंडस्ट्री रेडी बनाने में काफी खर्च करती हैं क्योंकि अमूमन कॉलेज से पढ़ कर निकले लड़को में स्किल और प्रेक्टिकल नॉलेज की भारी कमी होती है | भारत सरकार की नई शिक्षा नीति के अनुसार आठवीं कक्षा तक किसी को फेल नहीं करना है , इससे भले हम UN से पूर्ण साक्षर देश होने का तमगा ले लें पर इससे किसी का भला नहीं होगा | आज हाल ये है कि आठवीं का छात्र दूसरी कक्षा की किताब नहीं पढ़ पा रहा है | इस तरह के आठवीं पास कुछ समय बाद 12 वीं पास फिर B. Sc. पास हो जाएँगे B Tech भी कर ले तो कोई आश्चर्य नहीं | फिर चालू होगी इनकी “ रैट रेस” नौकरी के लिए | यह एक कड़वी सच्चाई है कि बड़ी बड़ी डिग्री होते हुए भी आज के युवा इस लायक नही कि उन्हें  काम दिया जा सके और अपनी योग्यता के अनुसार कम वेतन का काम करने में उन्हें शर्म आती है | सरकार ने बेशक स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक लगा दियें हों और सभी छात्रों को स्कूल लाने पर जोर दिया हो पर शिक्षा की गुणवत्ता की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया |
       मैं अक्सर रेल्वें में . पुलिस में या और किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में जानें वालों की भारी भीड़ देखता हूँ | अभी हाल ही में SBI PO  के एग्जाम में 17 लाख लोगों ने आवेदन किया | LIC  के एग्जाम में 10 लाख से ज्यादा लोग बैठे | 700 पदों के लिए 10 लाख ! मजाक है क्या ?
कुछ दिनों पहले बिलासपुर स्टेशन में दुसरे राज्यों से परीक्षा लिखने आये छात्रो को खदेड़ा गया व मार पीट की गई, पुलिस ने बल का प्रयोग किया | भिलाई में CRPF  की भर्ती में आए छात्रो ने शहर में हुडदंग मचाया , लड़कियों से छेड़ छाड़ की | यह सब और कुछ नहीं , आने वाले भविष्य की तस्वीर है |  युँवाओ को अगर काम या नौकरी नहीं मिलेगी और वह  कुछ सकारात्मक काम नहीं करेगा  तो चोरी , अपराध, हिंसा, रेप ही तो करेगा |
       वैसे युवाओ के साथ यदि आम भारतीयों की स्थिती का वृहद् रूप से आंकलन किया जाए तो “कर्म में विश्वास” न होना है कई समस्याओं का मूल कारण है | आज मंदिरों में मस्जिदों में पहले से कहीं अधिक भीड़ जमा होती है | और सभी तथाकथित भक्तों का सिंगल लाइन एजेंडा रहता है “ भगवान मेरी नौकरी लग जाए “ , “भगवान् मेरा धंधा जम जाए “, “ मैं और मेरा परिवार सुखी रहे “  आदि आदि | अब इनको कौन समझाए कि तुम्हारे जिस भगवान ने पृथ्वी में जन्म लिया वह खुद को तो कष्टों से बचा नहीं पाया तो तुमको कैसे बचा लेगा ?
“ निर्मल बाबा मेरी अच्छी नौकरी लग जाए “ जिस निर्मल बाबा ने खुद 50 तरह के धंधो में हाथ आजमा कर असफलता पाई वो तुम्हारी नौकरी कैसे लगा देगा ?

“कुछ तो बात होगी नहीं तो इतने अनुयायी नहीं बनते”  सहीं है आसाराम में बहुत बात थी तभी तो उसके 14 करोड़ अनुयायी हैं और जेल से छूट कर आने की देर है 28 होने में समय नहीं लगेगा | क्योंकि इस देश की जनता को ऐसे बाबाओं की जरुरत है जो इन्हें इंगेज रखे | बाबाओं की कोई गलती नहीं है | जिस तरह मार्केट में कोई उत्पाद जनता की पसंद पर लाया जाता है उसी तरह ये बाबा भी जनता की मांग पर ही लायें  गए है | किसी बाबा ने घर से पानी दिया और बंदा ठीक हो गया आज वह पानी वाला बाबा धूम मचाए हुए है , कल को वो पानी वाला बाबा बोल दे कि मैं तो नल का बिना फ़िल्टर हुआ पानी देता था तो जनता रातों रात कोई दूध वाला बाबा ढूंढ लेगी | इसलिए तो  तंत्र चले ना मंत्र ना रहे दुखों का घेरा भाग्य उदय हो जायेगा बस नोटों का बंडल तू देता ज़ा चेला...

Wednesday 18 September 2013

“ तो कहाँ चले : एक यादगार यात्रा “

“ तो कहाँ चले “ मैंने पूछा |

“ तू बता “ राहुल ने खूबसूरती के साथ वापस सवाल दाग दिया |

हमेशा कि तरह इस बार भी मेरा और राहुल ने कही घूमने जाने की योजना बनाई , पर कहाँ जाना है इसका फैसला नहीं हो पा रहा था | मैंने राहुल को शुक्रवार की रात ही बुला लिया सोचा डिनर के साथ फ़ैसला कर लेंगे | परन्तु दोनों के विचारो में समन्वय न हो सका, शनिवार सुबह 11 बज गए और सवाल अब भी हमारे सामने हँसता हुआ खड़ा था |

“गाड़ी लेकर निकलते हैं ,रास्ते में कोई प्लान बना लेंगे “ मैंने पूर्वानुभव का सहारा लिया |

“सही बोल रहा है , बाहर की हवा से शायद दिमाग खुल जाए “ राहुल का हवा – धुएँ पर विश्वास पुराना था |

बिलासपुर शहर के बाहर रतनपुर की तरफ़ हमारी गाड़ी मुड़ी ही थी कि शहर के प्राक्रतिक एवम् कृत्रिम धुएँ ने अपना कमाल दिखाया और राहुल के मस्तिष्क में अत्यंत क्रांतिकारी और साहसी विचार आया |

“पुरी चलते हैं “ राहुल ने उत्साही भाव से कहा |

“भाई बहुत दूर है , ऊपर से रास्ता भी नहीं मालूम है “ मैंने टालू मुद्रा में कहा |
परन्तु राहुल अपने इरादे में कामयाब हो गया और फ़ोन से ही पुरी का पूरा मैप ले लिया | मुझे कार सीखे अभी ज्यादा समय नहीं हुआ था इसलिए मै ज्यादा कॉन्फिडेंट नहीं था राहुल भी गाड़ी चलाना नहीं जानता था पर हमने इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा और कार शिवरीनारायण की ओर मोड़ दी | हमने कार में पहले से आईस बॉक्स रखा हुआ था | योजना फाइनल होने के बाद हमने आईस ख़रीदी और उसमे खूब सारी कोल्ड्रिंक की बोतल डाल दी | इतनी लम्बी यात्रा का हम पूरा आनंद लेना चाहते थे ,गाड़ी में पेट्रोल डलवाया और बिलासपुर को अलविदा कह दिया |

“भाई  भूख लग रही है , कहीं खाना खाते हैं” राहुल कोल्ड्रिंक पीते हुए बोला |

2-3 घन्टे  हो गए थे गाड़ी चलाते हुए , लंच का समय भी हो गया था सो मैंने हाइवे के किनारे एक ढाबे पे गाड़ी रोक दी |  राहुल अपनी मस्ती में कोल्ड्रिंक की बड़ी बोतल निकाल कर ढाबे पे जा बैठा |

“साहब, बाहर की कोल्ड्रिंक यहाँ अलाऊ नहीं है “ ढाबा मालिक ने नाराजगी से कहा |

“पीना है तो हमसे खरीद कर पियो “ अगले क्षण उसने समाधान भी दे दिया |

मैंने उत्साही राहुल को सम्हाला और ढाबे वाले की बात बुरी न मानने की सलाह दी | फिर हमने लंच किया , खाना शानदार था और हमने इसकी तारीफ मालिक से कर दी , तब तक ढाबा मालिक हमारा दोस्त बन चुका था |  दो नवयुवकों को अनजान सफ़र पे जाते देख उसे भी अपनी जवानी के दिन याद आ गए और उसने पुरी, कोणार्क यात्रा की खुबसूरत यादें ताज़ा कर ली , उसके द्वारा बनाए गए रेखाचित्रों से हमें भी जल्दी पहुँचने की इच्छा होने लगी और अगले क्षण हम वापस हाइवे पर थे | पेट्रोल कार हाइवे पर भगाते हुए कब शाम हो गई पता ही नहीं चला |

“ दिखा मैं चलाता हूँ “ राहुल अचानक एक्टिव मोड पर आते हुए बोला |

“ तूने पहले कभी कार चलाई है “ मेरा स्वभाविक प्रश्न था |

“ नहीं चलाई पर चला लूँगा “ राहुल ने अतिरिक्त आत्मविश्वास से कहा |
हाइवे पर ज्यादा ट्रेफिक नहीं था, सूरज भी अभी डूबा नहीं था और मैं थक चुका था | अगर इसे कार चलाने देना है तो यही सर्वोत्तम समय है मेरे दिमाग ने सभी केल्कुलेशन करके अपना निर्णय दिया | थोड़ी देर में राहुल स्टेयरिंग पर था |

“भाई ,  अपने को जल्दी नहीं है आराम से चलाना “ मैंने अपनी शंका , भय और सुझाव को इस वाक्य में समेटा |

परन्तु अगले 20 मिनट में मेरी सभी शंका का समाधान हो गया , राहुल बहुत अच्छी तरह ड्राइव कर रहा था , शायद चिल्ड कोल्ड्रिंक का कमाल था | मैंने भी राहत की साँस ली , कार का संगीत धीमें-धीमें अपनी लगातार उपस्थिती दर्ज कराता रहा और हम आगे बढ़ते गए |

“छोटू खाने में क्या है , मेनू है क्या? “ राहुल ने छोटू वेटर को हड़काते हुए पूछा |

रात में काफी लम्बी दूरी तक ढाबा ढूंढने के बाद बड़ी मुश्किल से ये छोटा सा ढाबा मिला था | उसपे ये तेवर मैं घबरा गया कि कहीं खाना देने से मना न कर दे, मैंने सिचुएशन सम्हाली और छोटू को प्यार से आर्डर दिया | अब तक रात के 10 बज चुके थे और शाम से मै ही कार चला रहा था | हमने खाने के बाद अपने गंतव्य के बारे में ढाबे वाले से पूछताछ चालू की और “रोड कैसी है “, “कितना दूर है” , “कितना समय लगेगा” आदि-आदि घुमक्कड़ी की मूल शंकाओं को जाहिर किया | ढाबे वाले ने भी इत्मिनान के साथ इस नए एक्सपीरिएंस को एन्जॉय किया और हमें विस्तार से सब बताया |

“ साहब , गाड़ी आराम से चलाना ,ओवरटेक मत करना , यहाँ रात को बहुत एक्सीडेंट होते हैं अभी दो दिन पहले ही एक हुआ है “ उसने इन शब्दों के साथ अपनी वाणी को विराम दिया |
हमने भी आपस में चर्चा करके निष्कर्ष निकाला “जान है तो जहान है” इसलिए जल्दी नहीं करनी , मैंने आराम से कार आगे बढ़ानी प्रारंभ की | रात में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था और ट्रकों के पावरफुल लाइट्स कि वजह से आँखों में परेशानी हो रही थी | राहुल ने मेरी परेशानी भांपी और एक बार फिर स्वयं चालन का प्रस्ताव दे डाला | चूँकि मुझे परेशानी हो रही थी सो इस बार मैंने बिना समय गवाएँ स्टेयरिंग राहुल के हवाले कर दी | राहुल रात में भी अच्छा ड्राइव कर रहा था | सुबह की थकान और भर पेट भोजन के डेडली कॉम्बिनेशन ने तुरन्त असर दिखाया और मैं नींद की आगोश में चला गया | रात के 1.30 के आसपास मेरी नींद खुली , राहुल 100 -120 की स्पीड में कार भगा रहा था चूँकि रोड सिक्स लेन थी और जगह पर्याप्त थी सो मैंने भी आपत्ति नहीं की |

“हम कहाँ पहुँचे “ मैंने उबासी लेते हुए पूछा |

“ कटक के पहले हाइवे पे टर्न लिया हूँ , अभी आधे घन्टे से हाइवे पर हैं “ राहुल के चेहरे पर विजयी भाव थे शायद 120 की स्पीड के लिए | कार हाइवे पर और आधा घंटा थी |

“कोणार्क कहाँ है “ टोल के दुसरे सिरे पर पहुँचते ही मैंने वहां के कर्मचारी से पूछा |

“कोणार्क ?? ये तो कलकत्ता रूट है “ उसने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा |

समझने में देर न लगी की मान्गुली नाका से गलत टर्न ले लिया और ऊपर से 100 किमी आगे भी आ गए हैं और अब वापस 100 किमी जाना पड़ेगा | मैंने बिना समय गवाएँ राहुल पर जोश में होश खो देने का इल्जाम लगा दिया , जिसे राहुल ने “ छोड़ न बे, होता है “ जैसे वाक्यास्त्र का प्रयोग करते हुए तुरंत दूर कर लिया | अब अपनी कार वापस सिक्स लेन हाइवे पर थी पर उलटी दिशा पे | राहुल की स्पीड अभी भी 100 -120 थी और चेहरे पर गलती का बिल्कुल भी अहसास नहीं , शायद रास्ते में फिर कोल्ड्रिंक ली थी कहीं |

      टोल नाका खत्म  होते ही मैंने राहुल को आराम करने की सलाह दी | सुबह के लगभग 4.30 बजे थे चूँकि ठण्ड का समय था रास्ते में धुंध बिछी हुई थी तब तक हल्की हल्की रोशनी हो चुकी थी | धुंध के बीच चलते हुए मुझे अहसास हुआ कि मैं बादलों में उड़ रहा हूँ , किसी हिंदी पौराणिक फिल्म की तरह आकाश में , मैं उस वक़्त एक अलौकिक वातावरण का अनुभव कर रहा था , मेरे लिए उस एक क्षण में ही यह यात्रा सार्थक हो चुकी थी | राहुल गहरी नींद में था , शायद हम दोनों ही अपने काल्पनिक संसार में विचरण कर रहे थे , मैं खुली आँखों से और वो बंद |

      कोणार्क पहुँच कर हमने जैसे ही सूर्य मंदिर परिसर में प्रवेश किया इसकी भव्यता देख कर हम अभिभोर हो गए | सूर्य मंदिर उड़िया स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है तथा यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल है | मंदिर काफी आकर्षक है तथा हर साल लाखो देशी व विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करता है, सूर्य ग्रहण के समय तो विश्व स्तर के खगोल शास्त्री यहाँ एकत्रित होते हैं | इसके निर्माण में 1200 कुशल शिल्पियों ने 12 साल तक लगातार काम किया , मन्दिर को रथ का स्वरूप देने के लिए मन्दिर के आधार पर दोनों ओर एक जैसे पत्थर के 24 पहिए बनाए गए हैं और पहियों को खींचने के लिए 7 घोड़े बनाए गए हैं | इस मंदिर को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि अपने सात घोड़े वाले रथ पर विराजमान सूर्य देव अभी-अभी कहीं प्रस्थान करने वाले हैं |  

मंदिर दर्शन के बाद हम बीच पहुँचे किस्मत ने अब की बार भी हमारा साथ दिया और हम वहां “सैंड आर्ट एक्सिबिशन “ देख कर रोमांचित हो गए | चूँकि यह आखिरी दिन था इसलिए ज्यादा सुरक्षा नहीं थी , हमने मौका नहीं गवाया और भारतीय परम्परा निभाते हुए बेरियर लाँघ कर प्रदर्शनी के साथ कई फोटो निकाली | राहुल ने उगते सूरज को हथेली में पकड़ कर फ़ोटो खिंचाई |

      कोणार्क से पुरी हम समुद्र से लगी हुई सड़क से होते हुए गए | रास्ते में विभिन्न प्रवासी पक्षी दिखे तो मन प्रसन्न हो गया | कुछ ही देर में हम पुरी पहुँच चुके थे | भगवान के दर्शन के बाद बीच का आनंद लिया |

“ जल्दी खाना खा कर सो जाते हैं , सुबह 5 बजे निकलना है “ मैंने राहुल को याद दिलाया|
अगले दिन सुबह 5 बजे से वापसी की राह पकड़ी | वापसी करते हुए मन में सफल यात्रा होने से सुकून था | बिलासपुर पहुंचते हुए रात के 11 बज गए थे | पिछले 3 दिनों में हमने लगभग 35 घन्टे ड्राइविंग की थी 1500 किमी का सफ़र तय किया था | एक और यादगार यात्रा का समापन हो चुका था |

“अब आराम सीधा घर जा कर करूँगा “ राहुल ने मेरे बिलासपुर में ही रात रुक जाने के प्रस्ताव का उत्तर दिया |

मैंने सहमती दी और उसे ट्रेन में छोड़ने के लिए कार स्टेशन की ओर मोड़ दी |

“तो अगली बार कहाँ चले “ मैंने राहुल को दुर्ग की ट्रेन में चढ़ाते हुए फिर वही सवाल दोहराया |

“तू बता “ राहुल का जवाब था |


Sunday 1 September 2013

कानन पेंडारी

आज दिन भर धुप खिली थी लेकिन शाम को 4.30 के आस पास मौसम ने अपना मिजाज बदला और अचानक तेज बारिश चालू हो गई | इस वक्त मैं कानन पेंडारी जू में था | बारिश से बचने के लिए लोगों ने जू में बनी शेड में शरण ली और अपने को भीगने से बचाया |

Tuesday 20 August 2013

किस्सा बत्ती और सायरन का !

भारत में रहने वाले हर आम या खास आदमी के जीवन में शायद ही ऐसा न हुआ हो कि उसे लाल-पीली बत्ती वाली गाड़ी के लिए रोका या सड़क से साईड उतरने के लिए न कहा गया हो | पायलट वाहन में चलने वाले पुलिस वालों के तो क्या कहने , सड़क पर आगे चलते हुए ये जवान दोनों तरफ से इस तरह डंडा लहराते हैं जैसे कि अगर सड़क से नहीं उतरे तो डंडा अब फ़ेंक के मारा  कि तब , शायद डंडा गलती से इनके हाथ में दे दिया गया इनका उग्र व्यवहार के हिसाब से तो इनके हाथ में बन्दूक ही फिट लगती है , जो सड़क से नीचे नहीं उतरा चला दो उसपर |
       भारत की आजादी का 67 वां वर्ष अभी हाल में ही हमने धूमधाम से मनाया , अफ़सोस आजादी के इतने साल बाद भी कुछ परम्पराएँ/कानून इस देश में चल रहे हैं जो रह रह कर “ब्रिटिश राज युग” की याद दिलातें हैं | उनमें से एक है लाल-पीली बत्ती और सायरन |
       हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के जज श्री जी एस सिंघवी ने अपनी कार से लाल बत्ती हटा ली और सरकार से पूछा है कि किस नियम के तहत उन्हें यह लाल बत्ती दी गई है | सरकार के वकील ने दलील दी की सरकार की तरफ से संवैधानिक पद के अलावा “हाई डिग्नेटरीस “ को लाल बत्ती दी जाती है | जहाँ तक पीली बत्ती का सवाल है “न्याय व कानून “ व्यवस्था संभालने वाले सरकारी कर्मचारियों को यह दी जाती है |
       हालाँकि लाल-पीली बत्ती और सायरन का दुरूपयोग किसी से छिपा नहीं है | इस देश के प्रजातंत्र का दुर्भाग्य ही है की जिस आदमी को मतदाता वोट देकर चुनाव जिताता है वही चुनाव के बाद उस पैदल, सायकल, मोटर सायकल या कार में चलने वाले मतदाता को रौब दिखाने और सड़क से हकालने के लिए बत्ती और सायरन का उपयोग करता है | जैसे कि कहना चाहता हो अब “मैं यहाँ का राजा हूँ और सड़क मेरे बाप की है” | तुष्टिकरण की राजनीति इस तरह हावी है कि अगर चहेतों को मत्रिमंडल में जगह न दे पाए तो सरकार के दर्जनों की संख्या में खोले गए निगमों का अध्यक्ष बना कर लाल बत्ती बाँट दो | प्रशासनिक सेवक भी कम नहीं हैं ये वहीँ है जो लोक सेवा आयोग की परीक्षा देते तक तो भारत को आगे बढाने , समाज में बदलाव की बात करते हैं,परीक्षा में पास होने से पहले देशभक्ति के गाने गाते हैं , जनसेवा की कसम खाते हैं, परंतु पद मिलते ही पीली बत्ती के जुगाड़ में लग जाते हैं | जब देश के “बेस्ट ब्रेन “ ऐसा सोचते हैं तो “मानसिक गरीब “ नेताओं/मंत्रियों को क्या कहा जाए | पीली बत्ती की लालसा का ये आलम है की “ न्याय और कानून “ व्यवस्था सँभालने वाले एस डी एम/ कलेक्टर / एस पी की बात छोड़िए , इनकम टैक्स विभाग के अधिकारी भी पीली बत्ती में घूमते हैं , अब इन्हें किस नियम के तहत पीली बत्ती मिली है सरकार ही जाने |

       बहरहाल इस प्रकरण में न्यायधीश सिंघवी की जितनी तारीफ की जाए कम है , सरकार सुप्रीम कोर्ट में देने के लिए कुछ न कुछ जवाब तो ढूंढ हे लेगी | सवाल तो हमें आपने आप से करना है कि पहली आज़ादी में तो महात्मा गाँधी थे जिन्होंने “सफ़ेद अंग्रेजों “ से आज़ादी दिलाई थी अब इन “काले अंग्रेजों” से आज़ादी के लिए कौन महात्मा आएगा |

Sunday 26 May 2013

एग्जाम इन्विजलेटर

कई बार एग्जाम देते हुए आदमी इतना बोर हो  जाता है और बोरियत को दूर करने के लिए उपलब्ध संसाधनों से ही समय काटने की कोशिश करने लगता है | पिछले दिनों UPSC का एग्जाम देते हुए मुझे भी ऐसा महसूस हुआ और मैंने एग्जाम इन्विजलेटर की ड्राइंग बनाने की कोशिश की.

Saturday 18 May 2013

Let’s go Social, Virtually.


Social Media as per Wiki is interactions among people in which they create, share, and exchange information and ideas in virtual communities and networks. This is not as we in India historically see the word Social. But things are changing faster now we consider this virtual social Media as today’s society and everybody put his best picture as his profile photo. People without giving a second thought putting their child's pictures, wife's, parent’s, whole family's picture and making it public. I don't understand why anyone want to show his family picture to an unknown person whom he/she never met in his life. What the fun being social in this way everybody seems to be in hurry to put his family history, social status, personal life on Social Media. This media converted every single person into a product and taught everybody without going into any B school 'the art of Marketing’. Have you ever seen anyone putting his ailing mother's photo? the answer is never, nobody does it because it downgrade their Market Value, Is this being social is all about? People spend so much time on Social Media these days but they themselves know it's all fake, how many people really give a thought about anything after liking/sharing any material on Facebook. Now everybody's social quotient is decided by how much time you spend on Social Media, how many friends you have, how many likes you get in a picture you post. What an irony an average person having more than 1000 friends on FB hardly knows 200 and hardly meet 10 in a month, how social is that? I salute to the concept of Social media, it keeps people engage as if they are nothing else to do. Earlier it was said that if government wants to divert people's attention from any issue they think to organize a cricket series, people get engage and forget everything else. Now they don’t need to think much Social Media is there.
Sooner or later charm of Social Media will fade but i am sure they will invent something better to keep people engage. So let’s celebrate and go social virtually in this new world.

Friday 3 May 2013

Open letter to Hon. Gujrat High court on it's observation of Chetan Bhagat's novel being pornographic.

Dear sir , 
We have been reading Chetan Bhagat from last many years and you might be surprised to know that this very guy opened all new gates of opportunities for so many young brilliant writers and revived print industry in some ways . this guy en-rooted reading habit in so many young people , suddenly today we have been told that all that literature that we have read so many times and enjoyed ourselves every time we read were pornographic . Do you live in current time or do you see everything through spects of 70's or 80's . Dear sir look outside India has changed so are the thinking of its young people . We are more responsible more productive than people were a decade or two ago. You might be of thinking that young generation is no good and only your time was best in all sense . Chetan Bhagat is one of the best writer of today's time ,his writings on many subjects including on many social and political issues have been excellent Ans he is successful in inculcating a new way thinking in young India. So by your judgement of seeing his work as pornographic, I humbly disagree.

Tuesday 9 April 2013

सिरपुर सैलानी की नज़र से : मेरी समीक्षात्मक दृष्टी


ख्यातिनाम ब्लॉगर ललित शर्मा की नवीन कृति “सिरपुर सैलानी की नज़र से “ पढ़ने का मौका लगा | वैसे तो ललित जी से परिचय ज्यादा पुराना नहीं है परन्तु कम समय में ही उनकी लेखनी ने हजारों पाठकों की तरह मुझे भी प्रभावित किया | विभिन्न विषयों में उनकी अच्छी पकड़ है जो उनकी लेखनी में स्पष्ट रूप से सामने आती है विशेषकर उनके हास्य व्यंग्य व पुरातात्विक / सांस्कृतिक महत्व का वर्णन करते उनके यात्रा वृतांत | बहरहाल मुझे उनकी यह नई किताब करीब एक महीने पहले मिली थी जिसे मैंने दो दिनों में ही पढ़ लिया था परन्तु समयाभाव के कारण इसके बारे में लिख नहीं सका | इस किताब की विशेषता यह है कि यह पाठक को शुरू से अंत तक बांधे रखती है तथा उनका मनोरंजन करने के साथ साथ ज्ञान में भी वृद्दि करती है | आमतौर पर ललित जी के लिखने का यही ट्रेडमार्क स्टाइल है | इससे पाठक उबता नहीं और कहानी में बना रहता है | हमेशा की तरह इस बार भी शर्मा जी का अवलोकन सूक्ष्म व अकाट्य रहा है | मसलन पेज 28 पर बताया गया कि वर्तमान सिरपुर में २ मेडिकल स्टोर्स , 4 किराना दुकान , 3 कपडा दुकान , 2 पंचर बनाने की दुकान .......................इत्यादि हैं | किताब में दिए गए तथ्यों का जगह जगह पर रिफरेंस तथा चित्र दिया हुआ है जो इसकी प्रमाणिकता पर चार चाँद लगातें हैं तथा इसे एक संग्रहणीय किताब का दर्जा देते हैं | पेज 85 पर शर्मा जी ने सिरपुर बाजार की आभासी सैर कराई परन्तु वास्तविकता में उनकी कल्पनाशक्ति व उत्तम लेखनी के कारण यह जरा भी आभासी नहीं लगा और हमने मुफ्त में ही सैर कर ली | भविष्य में इसी तरह की उत्तम रचना देने के लिए शुभकामनाएँ|

Sunday 17 February 2013

बसंत आगमन



भगवान ने इंसान को बहुत सी नेमते दी है पर मेरे विचार से उनमे से सबसे ऊपर है हमारी आंख जिससे हम इस सुन्दर दुनिया को देख पाते हैं. एक कलाकार की नज़र से देखने पर भगवान की बनाई यह श्रृष्टि अदभुत लगती है. इस दुनिया में आज तक जो भी कला से सम्बंधित कार्य हुए हैं वो सब कही न कही ईश्वर की बनाई इस दुनिया से ही प्रेरित हुए हैं. रंगों से भरी इस दुनिया का निखार बसंत ऋतू में अपने सबाब पर होता है और हम मुँह खोल कर उस महान कलाकार की इस दुनिया को विस्मृत हो कर बस देखते रहते हैं - देखते रहते हैं|

Friday 18 January 2013

आज यूँ ही कागज में लिखने का मन कर रहा है | पहले कभी इतने आराम से लेट कर नहीं लिखा | आज सुबह से दिमाग में उथल पुथल है शांति ही नहीं है | इन्टरनेट और कंप्यूटर ने दिमाग खराब कर के रखा है रही सही कसर मोबाइल पूरी कर देता है | कल बाहर जाना है उसी की प्लांनिग चल रही है ८०० किमी है | सफर जिंदगी का कितना महत्वपूर्ण हिस्सा होता है | मंजिल में पहुँचने का आनंद तो केवल कुछ पल ही रहता है | जो कुछ याद रह जाता है तो वह है केवल सफर |
      “जिंदगी एक सफर है सुहाना यहाँ कल क्या हो किसने जाना “
हम सब केवल मंजिल को ही महत्वपूर्ण मानते है परन्तु मंजिल तक पहुँचने क सफर का अनुभव ही हमारी वास्तविक उपलब्धि होती है | हमें केवल यह मालूम है कि इस जिंदगी के सफर में हम सब मुसाफिर है जाना कहाँ है नहीं मालूम, तो क्यों न इस सफर को ही इतना सुहाना बना लिया जाए कि मंजिल पाने - न पाने कि चिंता ही न रहे | चलना ही इस दुनिया का शाश्वत सत्य है | सभी चल रहें हैं सूर्य चल रहा है, पृथ्वी चल रही है , सभी गृह - नक्षत्र चल रहें हैं | पृथ्वी में ऊपर हवाएँ चल रही हैं , धरती के नीचे कि प्लेट्स चल रही हैं | आखिर कहाँ हैं इन सब कि मंजिले कब तक चलते रहेंगे ये यूहीं ? इनकी कोई मंजिल भी है या नहीं ? या ये अपने सफर में ही इतने मस्त हो गए हैं कि मंजिल को ही भूल गए या यूँ कहे कि इनकी मंजिल ही सफर है या फिर सफर ही मंजिल? 


नोट : इसे कागज में लिखने के बाद टाइप किया गया है |