Monday 17 October 2016

साँची

साँची में पहुँचते ही मन विशाल स्तूप और वास्तुकला को देख कर मंत्रमुग्ध हो जाता है। चारों द्वारों में उत्कीर्ण कलाकृति का उससे जुडी कथाओं के साथ अध्ययन करने पर यात्रा सफल हो जाती है।

Wednesday 20 January 2016

"मैं नास्तिक क्यों हूँ" भगत सिंह

कल भगत सिंह का लेख " मैं नास्तिक क्यों हूँ" पढ़ा। उसमे भगत सिंह ने अपने नास्तिक पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। लेख पढ़ने पर मुझे लगा की भगत सिंह एक जिद्दी व्यक्ति थे और यथार्थ पर यकीन करते थे उन्होंने हर वक़्त तार्किकता और कॉमन सेंस से चीजों को देखा। उनमे क्रन्तिकारी बनने की बहुत ललक पहले से थी । विश्व के महान क्रान्तिकारियो से प्रेरणा लेते हुए भगत सिंह भी नास्तिकता के मार्ग पर आगे बढ़ते गए। उनके साथियों ने पहले उन्हें समझाया फिर मुसीबत में स्वयं भगवान की शरण में आने की उलाहना दी। भगत सिंह ने अपने साथी क्रांतिकारियों के यथार्थ पर विश्वास होने के बाद भी अंत में भगवान् की शरण में जाने का उल्लेख किया है । अपने लेख में भगत सिंह ने हिन्दू धर्म के आदिपुरूषो पर सीधा प्रहार किया कि किस तरह वह अगले जनम में सुख समृद्धी का सपना दिखा कर इस जनम में लोगों को लूटते हैं,अपनी सत्ता बनाये रखने के लिए लोगों को ज्ञान से दूर रखते हैं। ब्राम्हणो द्वारा चालाकी पूर्वक सब कुछ रचने का आरोप भगत सिंह लगाते हैं उनकी नज़रों में पुराणो का कोई स्थान नहीं है। भगत सिंह कहते हैं कि सबसे बड़ा पाप "गरीबी" है। गरीब व्यक्ति की कोई सुनवाई नहीं होता गरीब होना इस दुनिया का सबसे बड़ा अपराध है। भगत सिंह आस्तिकों को खुला चैलेंज देते हुए कहते है की यदि दुनिया में भगवान होते तो क्या वे अपने लोगों को इस दीन दुखी अवस्था में रहने देते ? और सब कुछ जानते हुए भी यदि उन्हें(भगवान्) अपनी बनाई दुनिया में रहने वाले लोगों को कष्ट और दुःख देने में आनंद आता है तो उनमे और चंगेज़ खा , नीरो में क्या फ़र्क़ है? भगत सिंह अपने तर्कों और विश्वासों पर मजबूती से खड़े दिखते  हैं।
                    भगत सिंह ने जब यह लेख लिखा तब वह जेल में बंद थे और उनके साथ कैद एक व्यक्ति ने जब उन पर प्रसिद्धि के कारण दंभी होने के परिणामस्वरूप नास्तिक होने का आरोप लगाया तो उसके जवाब में उन्होंने यह लेख लिखा। भगत सिंह अपनी मान्यताओ और विचारो को प्रकट करने में पूरे ईमानदार रहे । उन्होंने अपनी मान्यताओं के पक्ष में कई तर्क दिए। उनका विश्वास इस दुनिया को सुखी और हर व्यक्ति को समृध्द बनाने में था उनके लेख में समाजवाद की छाया स्पष्ट है। लेख लिखते समय उनकी उम्र 23 वर्ष थी इस हिसाब से उनमे अपने उम्र के बाकि नौजवानो की अपेक्षा ज्यादा समझदारी थी। उन्होंने वैज्ञानिक खोजो का उदाहण देते हुए अपना पक्ष मजबूत किया है। भगत सिंह यदि और जिन्दा रहते तो निश्चित ही उनके कई मान्यताओं में अंतर आता । परंतु कम उम्र में भी इतनी समझ रखने वाले इस देशप्रेमी और नास्तिक व्यक्तित्व को मेरा प्रणाम।

नोट:यदि मेरे इस विचार द्वारा किसी भी व्यक्ति की भावनाएं आहत हुई हो तो इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

-पंकज सिंह

Monday 18 January 2016

सचिन के सन्यास पर मेरी भावनाएं

कौन था वह ? शायद बचपन की एक याद । मेरी बचपन की यादो का साथी या हम सब की । ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि अचानक बस आँखों से झर झर आंसू गिर रहे हों । पता नहीं क्यों दिल से आवाज आ रही है कि मत जाओ। तुम चले जाओगे तो हमारा क्या होगा। सचिन अब मैदान में नहीं आएगा सोच कर भावनाओं का तूफान आ गया। बीते समय की यादें आँखों के सामने फ़िल्म की तरह घूमने लगी। हम सबका पूरी दुनिया में यदि कोई कॉमन दोस्त है तो वो सचिन है । बचपन में क्रिकेट खेलते हुए यदि किसी को सचिन कहा जाता तो उस समय होने वाली गर्व की अनुभूति कइयों में आज भी सिहरन पैदा कर देती है । हंसमुख शख्स क्रिकेट ही जिसके लिए सब कुछ है वो सचिन सभी के दिलो दिमाग पर हमेशा छाया रहा । 24 साल तक मेरे साथ रहा या मैं उसके साथ रहा ऐसा हमेशा लगा मुझे। किसी कंट्रोवर्सी में सचिन का नाम घसीटने की कोशिश की गई तो दिल से आवाज़ आयी नहीं इसको तो छोड़ दो। इतनी भावनाऍ सचिन के साथ जुडी है। दिन भर मैच खेलना हो या रात भर किसी टूर्नामेंट में इन सब का साक्षी है सचिन। पहली बार बैट पकड़ने से आखिरी बार क्रिकेट खेलने तक साथ था सचिन। एक मेंटर एक गार्डियन था हम सबका । क्रिकेट खेलना तो कब का छूट गया मैच भी कभी कभार ही देखता हूँ । फिर सचिन के जाने का इतना दुःख क्यों ? ये सवाल करोडो हिन्दुस्तानियों की तरह मेरे जेहन में है । चाहे वो क्रिकेट खेलते हो या नहीं। शायद सबसे ज्यादा दुःख मेरी पीढ़ी के लोगों को होगा जो अभी 30 के आसपास होंगे। बचपन का हीरो था सचिन । सचिन केवल एक नाम नहीं उसके साथ हमारे बचपन का पागलपन,शरारतें , मासूमियत सभी आ जाते हैं । इसी कारन उसके जाने का इतना दुख है । इतना लिखने के बाद भी क्षमा चाहूँगा कि मै अपनी भावनाए नहीं व्यक्त कर पा रहा हूँ । घर परिवार में किसी प्रिय की मृत्यु से जो शोक होता है उसका अनुभव कर रहा हूँ इस पल । यही तो मेरा ऐसा दोस्त था गुरु था जिससे कभी लड़ाई नहीं हुई मनमुटाव नहीं हुआ । ज्यादा नहीं लिख पा रहा पर इतना कह सकता हूँ भावनाएं सच्चा हैं आंसू सच्चे हैं प्यार सच्चा है। सचिन करोड़ों यादों के लिए दिल से धन्यवाद। तुम भगवान का हम सब के लिए सबसे सुन्दर  तोहफा हो जो हमें सबसे अजीज है।

नोट:यह लेख 16/11/2013 को सुबह 7.30 बजे लिखा गया था। सचिन तेंदुलकर के सन्यास के बाद

Saturday 16 January 2016

सुप्रीम कोर्ट ने वेज रिवीजन रुकवाने संबंधी पेटिशन सिरे से ख़ारिज की;याचिकाकर्ता को फटकार

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सुप्रीम कोर्ट ने वेज रिवीजन रुकवाने संबंधी पेटिशन सिरे से ख़ारिज की;याचिकाकर्ता को फटकार ;जज की आँखों में सैलरी देख कर आंसू आये।

संवाददाता : आज 16 जनवरी 2016 को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस कटियार की कोर्ट में बे माँ  कर्मचारियों के वेज रिवीजन रुकवाने संबंधी याचिका लगाई गई थी। आवेदन के साथ बेमाँ कर्मचारियों का नवीनतम वेतन सूची लगी थी जिसे देख कर जस्टिस के आँखों के आंसू रोके नहीं रुके। कोर्ट का माहौल एकदम से शांत हो गया ,सुई गिरने की आवाज़ भी सुनी जा सकती थी। कुछ देर तक ऐसा ही माहौल था। माननीय जस्टिस ने अपने आप को मुश्किल से सम्भालते हुए आंसू रोके, याचिका वहीँ फाड़ दी और पेटिशनर को बुला कर खरी खरी सुनाई और फटकार लगाते हुए याचिका सिरे से ख़ारिज कर दी।
"आज के ज़माने में इत्ते पैसे में क्या होता है।" कहते हुए जस्टिस ने बे माँ कर्मचारियों के साथ अपनी संवेदना दर्शायी। पेटिशन को पब्लिसिटी स्टंट और कमजोर बे माँ कर्मचारियों को डराने के लिए लगाया जाना बताया। कोर्ट  ने हिदायत दी की भविष्य में इन भोले भाले लोगों के खिलाफ यदि फालतू की याचिका लगा कर कोर्ट का समय बर्बाद किया तो कड़ी कार्यवाही की जाएगी। अंत में जस्टिस कटियार ने पूरे बे माँ परिवार को रात भर  एरियर कैलकुलेशन और शनिवार को ही पेमेंट कर देने पर बधाई दी।

Sunday 10 January 2016

चौरसिया समाज का सामाजिक मिलन कार्यक्रम


आज दिनांक 10 जनवरी को चौरसिया समाज का सामाजिक मिलन कार्यक्रम का आयोजन किआ गया। कार्यक्रम में रायपुर, धमतरी ,महासमुंद के अलावा अन्य शहरों के बंधुओ ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। कार्यक्रम की शुरुआत गायत्री मंदिर में यज्ञ से हुई ।जिसमे सभी ने आहुतियां डाली और माता गायत्री की पूजा अर्चना की। भोजन के पश्चात् गायत्री परिवार अभनपुर के प्रमुख श्री आर एस चौरसिया जी की अध्यक्षता में समाजिक समस्याओ पर  विचार गोष्टी हुई । बधुओं ने राजिम और चंपारण के मंदिर का भी दर्शनलाभ लिया।  अंत में धन्यवाद ज्ञापन में श्री चौरसिया जी ने समय समय पर ऎसे सामाजिक आयोजन होते रहने की आवश्यक्ता पर प्रकाश डाला।

Wednesday 6 January 2016

घर का चूल्हा

"दो स्पेशल चाय इलायची वाली " विकास ने होटल वाले लड़के को कहा। हमेशा की तरह विकास चौक के चौरसिया होटल में चाय पीने पहुंचा था | चाय पीते हुए विकास अपने मित्र के साथ यहाँ वहाँ की बाते कर रहा था  अचानक उसकी नजर कोने में अकेले बैठे नवयुवक पर पड़ी । पतला दुबला ,बिखरे बाल, पैरों में चप्पल पहना युवक थोड़ा परेशान लग रहा था।

"अरे वही लड़का और फिर से ये अखबार में पता नहीं क्या ढूंढ रहा है " विकास ने मन में सोचा
विकास पिछले कई दिनों से इस लड़के को रोज़ाना इसी वक़्त होटल में पाता।

उस दिन विकास अकेले होटल में पहुंचा अपनी टेबल में बैठने से पहले ही उसने फिर उसी लड़के को देखा विकास एक पल के लिए रुका और कुछ निश्चय करके उस लड़के की टेबल की ओर बढ़ा और टेबल में सामने की ओर बैठ गया । लड़का अनजान आदमी को अपने सामने पा कर थोडा घबरा गया। विकास ने मुस्कुराते हुए अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया और अपना परिचय दिया। उस लड़के ने भी धीरे से हाथ मिलाया।

"छोटू दो स्पेशल चाय और दो प्लेट समोसे ले आ" विकास ने आर्डर दिया। इस तरह दोनों के बीच बातचीत होने लगी उस लड़के का नाम अजंता था। अजंता एक पढ़ा लिखा युवक था परंतु आर्थिक तंगी की वजह से कॉलेज पूरा नहीं कर पाया वह नौकरी के लिए भटक रहा था। उसने विकास को बताया की रोज़ अख़बार में नौकरी के विज्ञापन देखता है परंतु कहीं सफलता नहीं मिलती।

"घर में माँ पिता के साथ दो छोटी बहनें हैं पिता की कमाई से जैसे तैसे घर चलता है। बहनो की शादी के लिए मुझे काम करना जरूरी है। "यह कहते हुए उसकी आँखे नम हो गई  । विकास ने उसे धीरज बंधाया।

"मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ अगर तुम चाहो तो" विकास ने अपनी चाय ख़त्म करते हुए कहा।

"वो कैसे ?क्या आप मुझे नौकरी दिला सकते हो?" अजंता ने उम्मीद और आश्चर्य से पूछा।

विकास मुस्कुराया और हँसते हुए अपना कार्ड उस युवक को दिया और कल 11 बजे ऑफिस में मिलने को कहा ।

अगले दिन विकास ने उस युवक की मुलाक़ात ऑफिस में सभी से करवाई । विकास को काम समझाया ऑफिस की औपचारिकता भी विकास ने स्वयं की और अजंता को ईमानदारी लगन और नम्रता से काम करने को कहा।
अजंता को अपने काम में बहुत सफलता मिली कुछ ही साल में उसने अपनी बहनों की शादी धूम धाम से की । स्वयं का घर बनाया जिसमे वह अपने माता पिता बीवी और दो बच्चों के साथ रहता है। समाज में अजंता की पूछ परख बढ़ गई और उसे सम्मान मिला।

कुछ साल बाद

"मैडम ये काम तुरंत कर दो " कुछ पेपर्स टेबल में पटकते हुए अजंता ने रौब से कहा।

चूँकि मैडम नई थी इसलिए उन्होंने विरोध किआ और कहा पहले जिन्होंने पेपर्स दिए हैं उनका काम होगा।

अजंता भड़क गया । मैडम आप हमें नहीं जानती

"हम कमा के लातें हैं तो आपके घर में चूल्हा जलता है,अभी देखना आप कैसे करती हो मेरा काम" यह कहते हुए उसने अपने पेपर वापस लिए और शाखा प्रबंधक के कक्ष में जाके मैडम की शिकायत कर दी।

शाखा प्रबंधक तुरंत मैडम के पास पहुँचे और फटकार लगाते हुए अजंता का काम सबसे पहले करने के निर्देश दिए।

मैडम कुछ नहीं समझ पायी बस आज्ञा का पालन किआ पर पत्र टाइप करते हुए उनके कानों में गूंज रहा था "हम कमा कर लातें हैं तो आपके घर चूल्हा जलता है"

नोट: इस काल्पनिक कहानी का बीमा उद्योग से दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है

पंकज सिंह