Monday, 23 September 2013

तंत्र चले न मंत्र

भारत विचित्रताओं से भरा देश है इतना विचित्र की विचित्रता को भी आश्चर्य हो जाए | भारत की आबादी 121 करोड़ है और दुनिया का सबसे ज्यादा यूथ भारत में ही हैं | विश्व की लगभग 15 प्रतिशत आबादी और केवल विश्व के 2.4 प्रतिशत में सिमटा भारत | भारत के रिसोर्स सीमित , पानी सीमित , जमीन सीमित , खाद्यान सीमित जबकि आबादी दिनों दिन बढती जा रही है | कुल मिला कर यहाँ जनसँख्या की फ़ौज है जहाँ तक नज़र आये बस जनता जनता और जनता | विकसित देशों की एक बड़ी समस्या वहां की कम जनसँख्या व यंग लोगों का नहीं होना हैं , इसलिए वहाँ मैनपावर की कमी से निपटने के लिए तीसरी दुनिया के लोगों को मौका दिया जाता है | वहां हर आदमी आत्मनिर्भर है और अर्थव्यवस्था में अपना योगदान करता है | जबकि भारत के अधिकांश लोग केवल दूसरों पर बोझ बने हुए हैं | हालाँकि महंगाई और संसाधनों की कमी को देखते हुए आज अधिकतर लोगों में रोजगार करने की भावना आई है परन्तु क्या काम ? हमारे लोग जो पढ़े लिखे हैं मेहनत नहीं करना चाहते और जो कम पढ़े लिखे है वो भी केवल उतना काम करना चाहते हैं कि घर का खर्च निकल जाए |
                ऐसा नहीं है कि भारत में रोजगार के अवसर नहीं बढे पर आर्थिक विकास और औद्योगिकीकरण से मिलने वाली नौकरीयाँ तो सीमित ही है | एक पहलु यह भी है कि जिस तरह आज का युवा नौकरी के लिए परेशान है तो बड़े कार्पोरेट हाउस और एम एन सी का भी वेलुएबल ह्यूमन रिसोर्स के लिए यही हाल है | ये कंपनियां न्यू रिक्रूट को ट्रेन करने और उनको इंडस्ट्री रेडी बनाने में काफी खर्च करती हैं क्योंकि अमूमन कॉलेज से पढ़ कर निकले लड़को में स्किल और प्रेक्टिकल नॉलेज की भारी कमी होती है | भारत सरकार की नई शिक्षा नीति के अनुसार आठवीं कक्षा तक किसी को फेल नहीं करना है , इससे भले हम UN से पूर्ण साक्षर देश होने का तमगा ले लें पर इससे किसी का भला नहीं होगा | आज हाल ये है कि आठवीं का छात्र दूसरी कक्षा की किताब नहीं पढ़ पा रहा है | इस तरह के आठवीं पास कुछ समय बाद 12 वीं पास फिर B. Sc. पास हो जाएँगे B Tech भी कर ले तो कोई आश्चर्य नहीं | फिर चालू होगी इनकी “ रैट रेस” नौकरी के लिए | यह एक कड़वी सच्चाई है कि बड़ी बड़ी डिग्री होते हुए भी आज के युवा इस लायक नही कि उन्हें  काम दिया जा सके और अपनी योग्यता के अनुसार कम वेतन का काम करने में उन्हें शर्म आती है | सरकार ने बेशक स्कूलों में पर्याप्त शिक्षक लगा दियें हों और सभी छात्रों को स्कूल लाने पर जोर दिया हो पर शिक्षा की गुणवत्ता की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया |
       मैं अक्सर रेल्वें में . पुलिस में या और किसी भी प्रतियोगी परीक्षा में जानें वालों की भारी भीड़ देखता हूँ | अभी हाल ही में SBI PO  के एग्जाम में 17 लाख लोगों ने आवेदन किया | LIC  के एग्जाम में 10 लाख से ज्यादा लोग बैठे | 700 पदों के लिए 10 लाख ! मजाक है क्या ?
कुछ दिनों पहले बिलासपुर स्टेशन में दुसरे राज्यों से परीक्षा लिखने आये छात्रो को खदेड़ा गया व मार पीट की गई, पुलिस ने बल का प्रयोग किया | भिलाई में CRPF  की भर्ती में आए छात्रो ने शहर में हुडदंग मचाया , लड़कियों से छेड़ छाड़ की | यह सब और कुछ नहीं , आने वाले भविष्य की तस्वीर है |  युँवाओ को अगर काम या नौकरी नहीं मिलेगी और वह  कुछ सकारात्मक काम नहीं करेगा  तो चोरी , अपराध, हिंसा, रेप ही तो करेगा |
       वैसे युवाओ के साथ यदि आम भारतीयों की स्थिती का वृहद् रूप से आंकलन किया जाए तो “कर्म में विश्वास” न होना है कई समस्याओं का मूल कारण है | आज मंदिरों में मस्जिदों में पहले से कहीं अधिक भीड़ जमा होती है | और सभी तथाकथित भक्तों का सिंगल लाइन एजेंडा रहता है “ भगवान मेरी नौकरी लग जाए “ , “भगवान् मेरा धंधा जम जाए “, “ मैं और मेरा परिवार सुखी रहे “  आदि आदि | अब इनको कौन समझाए कि तुम्हारे जिस भगवान ने पृथ्वी में जन्म लिया वह खुद को तो कष्टों से बचा नहीं पाया तो तुमको कैसे बचा लेगा ?
“ निर्मल बाबा मेरी अच्छी नौकरी लग जाए “ जिस निर्मल बाबा ने खुद 50 तरह के धंधो में हाथ आजमा कर असफलता पाई वो तुम्हारी नौकरी कैसे लगा देगा ?

“कुछ तो बात होगी नहीं तो इतने अनुयायी नहीं बनते”  सहीं है आसाराम में बहुत बात थी तभी तो उसके 14 करोड़ अनुयायी हैं और जेल से छूट कर आने की देर है 28 होने में समय नहीं लगेगा | क्योंकि इस देश की जनता को ऐसे बाबाओं की जरुरत है जो इन्हें इंगेज रखे | बाबाओं की कोई गलती नहीं है | जिस तरह मार्केट में कोई उत्पाद जनता की पसंद पर लाया जाता है उसी तरह ये बाबा भी जनता की मांग पर ही लायें  गए है | किसी बाबा ने घर से पानी दिया और बंदा ठीक हो गया आज वह पानी वाला बाबा धूम मचाए हुए है , कल को वो पानी वाला बाबा बोल दे कि मैं तो नल का बिना फ़िल्टर हुआ पानी देता था तो जनता रातों रात कोई दूध वाला बाबा ढूंढ लेगी | इसलिए तो  तंत्र चले ना मंत्र ना रहे दुखों का घेरा भाग्य उदय हो जायेगा बस नोटों का बंडल तू देता ज़ा चेला...

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