Wednesday 18 September 2013

“ तो कहाँ चले : एक यादगार यात्रा “

“ तो कहाँ चले “ मैंने पूछा |

“ तू बता “ राहुल ने खूबसूरती के साथ वापस सवाल दाग दिया |

हमेशा कि तरह इस बार भी मेरा और राहुल ने कही घूमने जाने की योजना बनाई , पर कहाँ जाना है इसका फैसला नहीं हो पा रहा था | मैंने राहुल को शुक्रवार की रात ही बुला लिया सोचा डिनर के साथ फ़ैसला कर लेंगे | परन्तु दोनों के विचारो में समन्वय न हो सका, शनिवार सुबह 11 बज गए और सवाल अब भी हमारे सामने हँसता हुआ खड़ा था |

“गाड़ी लेकर निकलते हैं ,रास्ते में कोई प्लान बना लेंगे “ मैंने पूर्वानुभव का सहारा लिया |

“सही बोल रहा है , बाहर की हवा से शायद दिमाग खुल जाए “ राहुल का हवा – धुएँ पर विश्वास पुराना था |

बिलासपुर शहर के बाहर रतनपुर की तरफ़ हमारी गाड़ी मुड़ी ही थी कि शहर के प्राक्रतिक एवम् कृत्रिम धुएँ ने अपना कमाल दिखाया और राहुल के मस्तिष्क में अत्यंत क्रांतिकारी और साहसी विचार आया |

“पुरी चलते हैं “ राहुल ने उत्साही भाव से कहा |

“भाई बहुत दूर है , ऊपर से रास्ता भी नहीं मालूम है “ मैंने टालू मुद्रा में कहा |
परन्तु राहुल अपने इरादे में कामयाब हो गया और फ़ोन से ही पुरी का पूरा मैप ले लिया | मुझे कार सीखे अभी ज्यादा समय नहीं हुआ था इसलिए मै ज्यादा कॉन्फिडेंट नहीं था राहुल भी गाड़ी चलाना नहीं जानता था पर हमने इस बारे में ज्यादा नहीं सोचा और कार शिवरीनारायण की ओर मोड़ दी | हमने कार में पहले से आईस बॉक्स रखा हुआ था | योजना फाइनल होने के बाद हमने आईस ख़रीदी और उसमे खूब सारी कोल्ड्रिंक की बोतल डाल दी | इतनी लम्बी यात्रा का हम पूरा आनंद लेना चाहते थे ,गाड़ी में पेट्रोल डलवाया और बिलासपुर को अलविदा कह दिया |

“भाई  भूख लग रही है , कहीं खाना खाते हैं” राहुल कोल्ड्रिंक पीते हुए बोला |

2-3 घन्टे  हो गए थे गाड़ी चलाते हुए , लंच का समय भी हो गया था सो मैंने हाइवे के किनारे एक ढाबे पे गाड़ी रोक दी |  राहुल अपनी मस्ती में कोल्ड्रिंक की बड़ी बोतल निकाल कर ढाबे पे जा बैठा |

“साहब, बाहर की कोल्ड्रिंक यहाँ अलाऊ नहीं है “ ढाबा मालिक ने नाराजगी से कहा |

“पीना है तो हमसे खरीद कर पियो “ अगले क्षण उसने समाधान भी दे दिया |

मैंने उत्साही राहुल को सम्हाला और ढाबे वाले की बात बुरी न मानने की सलाह दी | फिर हमने लंच किया , खाना शानदार था और हमने इसकी तारीफ मालिक से कर दी , तब तक ढाबा मालिक हमारा दोस्त बन चुका था |  दो नवयुवकों को अनजान सफ़र पे जाते देख उसे भी अपनी जवानी के दिन याद आ गए और उसने पुरी, कोणार्क यात्रा की खुबसूरत यादें ताज़ा कर ली , उसके द्वारा बनाए गए रेखाचित्रों से हमें भी जल्दी पहुँचने की इच्छा होने लगी और अगले क्षण हम वापस हाइवे पर थे | पेट्रोल कार हाइवे पर भगाते हुए कब शाम हो गई पता ही नहीं चला |

“ दिखा मैं चलाता हूँ “ राहुल अचानक एक्टिव मोड पर आते हुए बोला |

“ तूने पहले कभी कार चलाई है “ मेरा स्वभाविक प्रश्न था |

“ नहीं चलाई पर चला लूँगा “ राहुल ने अतिरिक्त आत्मविश्वास से कहा |
हाइवे पर ज्यादा ट्रेफिक नहीं था, सूरज भी अभी डूबा नहीं था और मैं थक चुका था | अगर इसे कार चलाने देना है तो यही सर्वोत्तम समय है मेरे दिमाग ने सभी केल्कुलेशन करके अपना निर्णय दिया | थोड़ी देर में राहुल स्टेयरिंग पर था |

“भाई ,  अपने को जल्दी नहीं है आराम से चलाना “ मैंने अपनी शंका , भय और सुझाव को इस वाक्य में समेटा |

परन्तु अगले 20 मिनट में मेरी सभी शंका का समाधान हो गया , राहुल बहुत अच्छी तरह ड्राइव कर रहा था , शायद चिल्ड कोल्ड्रिंक का कमाल था | मैंने भी राहत की साँस ली , कार का संगीत धीमें-धीमें अपनी लगातार उपस्थिती दर्ज कराता रहा और हम आगे बढ़ते गए |

“छोटू खाने में क्या है , मेनू है क्या? “ राहुल ने छोटू वेटर को हड़काते हुए पूछा |

रात में काफी लम्बी दूरी तक ढाबा ढूंढने के बाद बड़ी मुश्किल से ये छोटा सा ढाबा मिला था | उसपे ये तेवर मैं घबरा गया कि कहीं खाना देने से मना न कर दे, मैंने सिचुएशन सम्हाली और छोटू को प्यार से आर्डर दिया | अब तक रात के 10 बज चुके थे और शाम से मै ही कार चला रहा था | हमने खाने के बाद अपने गंतव्य के बारे में ढाबे वाले से पूछताछ चालू की और “रोड कैसी है “, “कितना दूर है” , “कितना समय लगेगा” आदि-आदि घुमक्कड़ी की मूल शंकाओं को जाहिर किया | ढाबे वाले ने भी इत्मिनान के साथ इस नए एक्सपीरिएंस को एन्जॉय किया और हमें विस्तार से सब बताया |

“ साहब , गाड़ी आराम से चलाना ,ओवरटेक मत करना , यहाँ रात को बहुत एक्सीडेंट होते हैं अभी दो दिन पहले ही एक हुआ है “ उसने इन शब्दों के साथ अपनी वाणी को विराम दिया |
हमने भी आपस में चर्चा करके निष्कर्ष निकाला “जान है तो जहान है” इसलिए जल्दी नहीं करनी , मैंने आराम से कार आगे बढ़ानी प्रारंभ की | रात में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था और ट्रकों के पावरफुल लाइट्स कि वजह से आँखों में परेशानी हो रही थी | राहुल ने मेरी परेशानी भांपी और एक बार फिर स्वयं चालन का प्रस्ताव दे डाला | चूँकि मुझे परेशानी हो रही थी सो इस बार मैंने बिना समय गवाएँ स्टेयरिंग राहुल के हवाले कर दी | राहुल रात में भी अच्छा ड्राइव कर रहा था | सुबह की थकान और भर पेट भोजन के डेडली कॉम्बिनेशन ने तुरन्त असर दिखाया और मैं नींद की आगोश में चला गया | रात के 1.30 के आसपास मेरी नींद खुली , राहुल 100 -120 की स्पीड में कार भगा रहा था चूँकि रोड सिक्स लेन थी और जगह पर्याप्त थी सो मैंने भी आपत्ति नहीं की |

“हम कहाँ पहुँचे “ मैंने उबासी लेते हुए पूछा |

“ कटक के पहले हाइवे पे टर्न लिया हूँ , अभी आधे घन्टे से हाइवे पर हैं “ राहुल के चेहरे पर विजयी भाव थे शायद 120 की स्पीड के लिए | कार हाइवे पर और आधा घंटा थी |

“कोणार्क कहाँ है “ टोल के दुसरे सिरे पर पहुँचते ही मैंने वहां के कर्मचारी से पूछा |

“कोणार्क ?? ये तो कलकत्ता रूट है “ उसने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा |

समझने में देर न लगी की मान्गुली नाका से गलत टर्न ले लिया और ऊपर से 100 किमी आगे भी आ गए हैं और अब वापस 100 किमी जाना पड़ेगा | मैंने बिना समय गवाएँ राहुल पर जोश में होश खो देने का इल्जाम लगा दिया , जिसे राहुल ने “ छोड़ न बे, होता है “ जैसे वाक्यास्त्र का प्रयोग करते हुए तुरंत दूर कर लिया | अब अपनी कार वापस सिक्स लेन हाइवे पर थी पर उलटी दिशा पे | राहुल की स्पीड अभी भी 100 -120 थी और चेहरे पर गलती का बिल्कुल भी अहसास नहीं , शायद रास्ते में फिर कोल्ड्रिंक ली थी कहीं |

      टोल नाका खत्म  होते ही मैंने राहुल को आराम करने की सलाह दी | सुबह के लगभग 4.30 बजे थे चूँकि ठण्ड का समय था रास्ते में धुंध बिछी हुई थी तब तक हल्की हल्की रोशनी हो चुकी थी | धुंध के बीच चलते हुए मुझे अहसास हुआ कि मैं बादलों में उड़ रहा हूँ , किसी हिंदी पौराणिक फिल्म की तरह आकाश में , मैं उस वक़्त एक अलौकिक वातावरण का अनुभव कर रहा था , मेरे लिए उस एक क्षण में ही यह यात्रा सार्थक हो चुकी थी | राहुल गहरी नींद में था , शायद हम दोनों ही अपने काल्पनिक संसार में विचरण कर रहे थे , मैं खुली आँखों से और वो बंद |

      कोणार्क पहुँच कर हमने जैसे ही सूर्य मंदिर परिसर में प्रवेश किया इसकी भव्यता देख कर हम अभिभोर हो गए | सूर्य मंदिर उड़िया स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है तथा यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल है | मंदिर काफी आकर्षक है तथा हर साल लाखो देशी व विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करता है, सूर्य ग्रहण के समय तो विश्व स्तर के खगोल शास्त्री यहाँ एकत्रित होते हैं | इसके निर्माण में 1200 कुशल शिल्पियों ने 12 साल तक लगातार काम किया , मन्दिर को रथ का स्वरूप देने के लिए मन्दिर के आधार पर दोनों ओर एक जैसे पत्थर के 24 पहिए बनाए गए हैं और पहियों को खींचने के लिए 7 घोड़े बनाए गए हैं | इस मंदिर को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि अपने सात घोड़े वाले रथ पर विराजमान सूर्य देव अभी-अभी कहीं प्रस्थान करने वाले हैं |  

मंदिर दर्शन के बाद हम बीच पहुँचे किस्मत ने अब की बार भी हमारा साथ दिया और हम वहां “सैंड आर्ट एक्सिबिशन “ देख कर रोमांचित हो गए | चूँकि यह आखिरी दिन था इसलिए ज्यादा सुरक्षा नहीं थी , हमने मौका नहीं गवाया और भारतीय परम्परा निभाते हुए बेरियर लाँघ कर प्रदर्शनी के साथ कई फोटो निकाली | राहुल ने उगते सूरज को हथेली में पकड़ कर फ़ोटो खिंचाई |

      कोणार्क से पुरी हम समुद्र से लगी हुई सड़क से होते हुए गए | रास्ते में विभिन्न प्रवासी पक्षी दिखे तो मन प्रसन्न हो गया | कुछ ही देर में हम पुरी पहुँच चुके थे | भगवान के दर्शन के बाद बीच का आनंद लिया |

“ जल्दी खाना खा कर सो जाते हैं , सुबह 5 बजे निकलना है “ मैंने राहुल को याद दिलाया|
अगले दिन सुबह 5 बजे से वापसी की राह पकड़ी | वापसी करते हुए मन में सफल यात्रा होने से सुकून था | बिलासपुर पहुंचते हुए रात के 11 बज गए थे | पिछले 3 दिनों में हमने लगभग 35 घन्टे ड्राइविंग की थी 1500 किमी का सफ़र तय किया था | एक और यादगार यात्रा का समापन हो चुका था |

“अब आराम सीधा घर जा कर करूँगा “ राहुल ने मेरे बिलासपुर में ही रात रुक जाने के प्रस्ताव का उत्तर दिया |

मैंने सहमती दी और उसे ट्रेन में छोड़ने के लिए कार स्टेशन की ओर मोड़ दी |

“तो अगली बार कहाँ चले “ मैंने राहुल को दुर्ग की ट्रेन में चढ़ाते हुए फिर वही सवाल दोहराया |

“तू बता “ राहुल का जवाब था |


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