Tuesday, 20 August 2013

किस्सा बत्ती और सायरन का !

भारत में रहने वाले हर आम या खास आदमी के जीवन में शायद ही ऐसा न हुआ हो कि उसे लाल-पीली बत्ती वाली गाड़ी के लिए रोका या सड़क से साईड उतरने के लिए न कहा गया हो | पायलट वाहन में चलने वाले पुलिस वालों के तो क्या कहने , सड़क पर आगे चलते हुए ये जवान दोनों तरफ से इस तरह डंडा लहराते हैं जैसे कि अगर सड़क से नहीं उतरे तो डंडा अब फ़ेंक के मारा  कि तब , शायद डंडा गलती से इनके हाथ में दे दिया गया इनका उग्र व्यवहार के हिसाब से तो इनके हाथ में बन्दूक ही फिट लगती है , जो सड़क से नीचे नहीं उतरा चला दो उसपर |
       भारत की आजादी का 67 वां वर्ष अभी हाल में ही हमने धूमधाम से मनाया , अफ़सोस आजादी के इतने साल बाद भी कुछ परम्पराएँ/कानून इस देश में चल रहे हैं जो रह रह कर “ब्रिटिश राज युग” की याद दिलातें हैं | उनमें से एक है लाल-पीली बत्ती और सायरन |
       हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के जज श्री जी एस सिंघवी ने अपनी कार से लाल बत्ती हटा ली और सरकार से पूछा है कि किस नियम के तहत उन्हें यह लाल बत्ती दी गई है | सरकार के वकील ने दलील दी की सरकार की तरफ से संवैधानिक पद के अलावा “हाई डिग्नेटरीस “ को लाल बत्ती दी जाती है | जहाँ तक पीली बत्ती का सवाल है “न्याय व कानून “ व्यवस्था संभालने वाले सरकारी कर्मचारियों को यह दी जाती है |
       हालाँकि लाल-पीली बत्ती और सायरन का दुरूपयोग किसी से छिपा नहीं है | इस देश के प्रजातंत्र का दुर्भाग्य ही है की जिस आदमी को मतदाता वोट देकर चुनाव जिताता है वही चुनाव के बाद उस पैदल, सायकल, मोटर सायकल या कार में चलने वाले मतदाता को रौब दिखाने और सड़क से हकालने के लिए बत्ती और सायरन का उपयोग करता है | जैसे कि कहना चाहता हो अब “मैं यहाँ का राजा हूँ और सड़क मेरे बाप की है” | तुष्टिकरण की राजनीति इस तरह हावी है कि अगर चहेतों को मत्रिमंडल में जगह न दे पाए तो सरकार के दर्जनों की संख्या में खोले गए निगमों का अध्यक्ष बना कर लाल बत्ती बाँट दो | प्रशासनिक सेवक भी कम नहीं हैं ये वहीँ है जो लोक सेवा आयोग की परीक्षा देते तक तो भारत को आगे बढाने , समाज में बदलाव की बात करते हैं,परीक्षा में पास होने से पहले देशभक्ति के गाने गाते हैं , जनसेवा की कसम खाते हैं, परंतु पद मिलते ही पीली बत्ती के जुगाड़ में लग जाते हैं | जब देश के “बेस्ट ब्रेन “ ऐसा सोचते हैं तो “मानसिक गरीब “ नेताओं/मंत्रियों को क्या कहा जाए | पीली बत्ती की लालसा का ये आलम है की “ न्याय और कानून “ व्यवस्था सँभालने वाले एस डी एम/ कलेक्टर / एस पी की बात छोड़िए , इनकम टैक्स विभाग के अधिकारी भी पीली बत्ती में घूमते हैं , अब इन्हें किस नियम के तहत पीली बत्ती मिली है सरकार ही जाने |

       बहरहाल इस प्रकरण में न्यायधीश सिंघवी की जितनी तारीफ की जाए कम है , सरकार सुप्रीम कोर्ट में देने के लिए कुछ न कुछ जवाब तो ढूंढ हे लेगी | सवाल तो हमें आपने आप से करना है कि पहली आज़ादी में तो महात्मा गाँधी थे जिन्होंने “सफ़ेद अंग्रेजों “ से आज़ादी दिलाई थी अब इन “काले अंग्रेजों” से आज़ादी के लिए कौन महात्मा आएगा |

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