Friday, 18 January 2013

आज यूँ ही कागज में लिखने का मन कर रहा है | पहले कभी इतने आराम से लेट कर नहीं लिखा | आज सुबह से दिमाग में उथल पुथल है शांति ही नहीं है | इन्टरनेट और कंप्यूटर ने दिमाग खराब कर के रखा है रही सही कसर मोबाइल पूरी कर देता है | कल बाहर जाना है उसी की प्लांनिग चल रही है ८०० किमी है | सफर जिंदगी का कितना महत्वपूर्ण हिस्सा होता है | मंजिल में पहुँचने का आनंद तो केवल कुछ पल ही रहता है | जो कुछ याद रह जाता है तो वह है केवल सफर |
      “जिंदगी एक सफर है सुहाना यहाँ कल क्या हो किसने जाना “
हम सब केवल मंजिल को ही महत्वपूर्ण मानते है परन्तु मंजिल तक पहुँचने क सफर का अनुभव ही हमारी वास्तविक उपलब्धि होती है | हमें केवल यह मालूम है कि इस जिंदगी के सफर में हम सब मुसाफिर है जाना कहाँ है नहीं मालूम, तो क्यों न इस सफर को ही इतना सुहाना बना लिया जाए कि मंजिल पाने - न पाने कि चिंता ही न रहे | चलना ही इस दुनिया का शाश्वत सत्य है | सभी चल रहें हैं सूर्य चल रहा है, पृथ्वी चल रही है , सभी गृह - नक्षत्र चल रहें हैं | पृथ्वी में ऊपर हवाएँ चल रही हैं , धरती के नीचे कि प्लेट्स चल रही हैं | आखिर कहाँ हैं इन सब कि मंजिले कब तक चलते रहेंगे ये यूहीं ? इनकी कोई मंजिल भी है या नहीं ? या ये अपने सफर में ही इतने मस्त हो गए हैं कि मंजिल को ही भूल गए या यूँ कहे कि इनकी मंजिल ही सफर है या फिर सफर ही मंजिल? 


नोट : इसे कागज में लिखने के बाद टाइप किया गया है |

1 comment:

  1. "क्यों न इस सफर को ही इतना सुहाना बना लिया जाए कि मंजिल पाने - न पाने कि चिंता ही न रहे | चलना ही इस दुनिया का शाश्वत सत्य है "
    वाह... चलना ही जिंदगी है, जहाँ पहुँच गए मंजिल वहीं है. सुन्दर विचार... शुभकामनायें

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