कल भगत सिंह का लेख " मैं नास्तिक क्यों हूँ" पढ़ा। उसमे भगत सिंह ने अपने नास्तिक पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। लेख पढ़ने पर मुझे लगा की भगत सिंह एक जिद्दी व्यक्ति थे और यथार्थ पर यकीन करते थे उन्होंने हर वक़्त तार्किकता और कॉमन सेंस से चीजों को देखा। उनमे क्रन्तिकारी बनने की बहुत ललक पहले से थी । विश्व के महान क्रान्तिकारियो से प्रेरणा लेते हुए भगत सिंह भी नास्तिकता के मार्ग पर आगे बढ़ते गए। उनके साथियों ने पहले उन्हें समझाया फिर मुसीबत में स्वयं भगवान की शरण में आने की उलाहना दी। भगत सिंह ने अपने साथी क्रांतिकारियों के यथार्थ पर विश्वास होने के बाद भी अंत में भगवान् की शरण में जाने का उल्लेख किया है । अपने लेख में भगत सिंह ने हिन्दू धर्म के आदिपुरूषो पर सीधा प्रहार किया कि किस तरह वह अगले जनम में सुख समृद्धी का सपना दिखा कर इस जनम में लोगों को लूटते हैं,अपनी सत्ता बनाये रखने के लिए लोगों को ज्ञान से दूर रखते हैं। ब्राम्हणो द्वारा चालाकी पूर्वक सब कुछ रचने का आरोप भगत सिंह लगाते हैं उनकी नज़रों में पुराणो का कोई स्थान नहीं है। भगत सिंह कहते हैं कि सबसे बड़ा पाप "गरीबी" है। गरीब व्यक्ति की कोई सुनवाई नहीं होता गरीब होना इस दुनिया का सबसे बड़ा अपराध है। भगत सिंह आस्तिकों को खुला चैलेंज देते हुए कहते है की यदि दुनिया में भगवान होते तो क्या वे अपने लोगों को इस दीन दुखी अवस्था में रहने देते ? और सब कुछ जानते हुए भी यदि उन्हें(भगवान्) अपनी बनाई दुनिया में रहने वाले लोगों को कष्ट और दुःख देने में आनंद आता है तो उनमे और चंगेज़ खा , नीरो में क्या फ़र्क़ है? भगत सिंह अपने तर्कों और विश्वासों पर मजबूती से खड़े दिखते हैं।
भगत सिंह ने जब यह लेख लिखा तब वह जेल में बंद थे और उनके साथ कैद एक व्यक्ति ने जब उन पर प्रसिद्धि के कारण दंभी होने के परिणामस्वरूप नास्तिक होने का आरोप लगाया तो उसके जवाब में उन्होंने यह लेख लिखा। भगत सिंह अपनी मान्यताओ और विचारो को प्रकट करने में पूरे ईमानदार रहे । उन्होंने अपनी मान्यताओं के पक्ष में कई तर्क दिए। उनका विश्वास इस दुनिया को सुखी और हर व्यक्ति को समृध्द बनाने में था उनके लेख में समाजवाद की छाया स्पष्ट है। लेख लिखते समय उनकी उम्र 23 वर्ष थी इस हिसाब से उनमे अपने उम्र के बाकि नौजवानो की अपेक्षा ज्यादा समझदारी थी। उन्होंने वैज्ञानिक खोजो का उदाहण देते हुए अपना पक्ष मजबूत किया है। भगत सिंह यदि और जिन्दा रहते तो निश्चित ही उनके कई मान्यताओं में अंतर आता । परंतु कम उम्र में भी इतनी समझ रखने वाले इस देशप्रेमी और नास्तिक व्यक्तित्व को मेरा प्रणाम।
नोट:यदि मेरे इस विचार द्वारा किसी भी व्यक्ति की भावनाएं आहत हुई हो तो इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
-पंकज सिंह