राजिम- छत्तीसगढ़ के प्रयाग के नाम से मशहूर राजिम रायपुर शहर से 48 किमी दूर तीन नदियों महानदी, पैरी और सोंढूर के संगम पर स्थित है | यहाँ पर प्रसिद्ध राजीवलोचन मंदिर स्थित है जिसका निर्माण नलवंशी विष्णु उपासक शासक विलासतुंग ने 7 वीं शताब्दी में करवाया था | प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा पर छत्तीसगढ़ शासन द्वारा यहाँ राजिम कुम्भ का आयोजन किया जाता है जिसमे बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं | हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पुरी के भगवान जगन्नाथ यहां स्वयं भगवान विष्णु की पूजा के लिए आते है अतः पुरी की यात्रा के बाद यहाँ की भी यात्रा अनिवार्य मानी गई है |
राजीव लोचन मंदिर के अलावा यहाँ कुलेश्वर
महादेव , राजेश्वर मंदिर, दानेश्वर मंदिर , रामचंद्र मंदिर , पंचेश्वर महादेव
मंदिर , राजिम तेलिन मंदिर , भूतेश्वर महादेव मंदिर , जगन्नाथ मंदिर और सोमेश्वर
महादेव मंदिर दर्शनीय है |
सिरपुर- महासमुंद जिले में महानदी के पूर्व पर
छत्तीसगढ़ का प्राचीन नगर सिरपुर बसा हुआ है इसका प्राचीन नाम श्रीपुर अर्थात
समृद्दी की नगरी था | सिरपुर शरभपुरी पांडुवंशियों तथा सोमवंशी राजाओ की प्राचीन
राजधानी होने के साथ साथ बौद्ध आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र थी | सिरपुर का लक्ष्मण
मंदिर लाल ईटों से निर्मित भारत के सर्वोत्तम मंदिरों में से एक है इसका निर्माण
महारानी वसाटा देवी ने अपने पति हर्षगुप्त की याद में 650 ई. में कराया था | यह मूलतः
विष्णु मंदिर है और इसके गर्भगृह में शेष नाग ,लक्ष्मण की प्रतिमा है इसी से इसका
नाम लक्ष्मण मंदिर पड़ा | सिरपुर 6 वी से
10 वी शताब्दी तक बौद्ध आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र था यहाँ महात्मा बुद्ध का आगमन
भी हुआ था चीनी यात्री व्हेनसांग ने यहाँ की यात्रा की थी | सिरपुर में अब तक 12
बुद्ध विहार, 1 जैन विहार , 22 शिव मंदिर और 5 विष्णु मंदिर प्राप्त हो चुके है इसके
अलावा यहाँ 6 वीं सदी के आयुर्वेदिक स्नान कुंड की भी खोज की गई है | यहाँ के चंदा
दाई गुफाओं में नागार्जुन जिन्हें गौतम बुद्ध के बाद सबसे प्रमुख बौद्ध दार्शनिक
माना जाता है ने पहली और दूसरी शताब्दी के मध्य ध्यान किया था | वर्ष 2014 में अध्यात्मिक
गुरु दलाई लामा जी ने इसी स्थान पर ध्यान किया और परम शांति का अनुभव किया |
छत्तीसगढ़ सरकार सिरपुर में हर वर्ष राष्ट्रीय
नृत्य और संगीत महोत्सव का आयोजन करती है जिसमे देश विदेश की जानी मानी हस्तियाँ
कार्यक्रम प्रस्तुत करती है | इस वर्ष पद्म विभूषण पंडित बिरजू महाराज का कत्थक
विशेष आकर्षण था |
भोरमदेव – भोरमदेव कवर्धा से 18 किमी दुरी पर स्थित
है | यह मंदिर गोंड़ जनजाति के देवता भोरमदेव के नाम से बनाया गया था | नागर शैली
में निर्मित यह मंदिर छत्तीसगढ़ में स्थापत्य व मूर्तिकला में अपना विशेष स्थान
रखता है |इसका निर्माण 1089 में फणीनागवंशी राजा गोपालदेव ने कराया था | इसके मुख्य मंदिर में शिवलिंग स्थापित है तथा
दीवारों पर हाथी , घोड़े नटराज, गणेश ,
मिथुन की मुर्तिया बनी हुई है, इनकी साम्यता कोणार्क के सूर्य मंदिर व खजुराहो की
मुर्तियों से है , भोरमदेव को छत्तीसगढ़ का
खजुराहो भी कहते है | यहाँ अन्य प्रमुख मंदिर मडवा महल जिसे दुल्हादेव भी कहते है स्थित
है इसका आकार विवाह मंडप की तरह है जिसका
निर्माण संभवतः विवाह संपन्न कराने के लिए कराया गया था | एक अन्य शिव मंदिर छेरका
महल भी देखा जा सकता है
भोरमदेव मंदिर
भोरमदेव : मंडवा महल
शिवरीनारायण – जांजगीर जिले में स्थित शिवरीनारायण राज्य के धार्मिक और पौराणिक महत्व का स्थान है | यहाँ तीन नदियों महानदी, शिवनाथ व् जोंक नदी का त्रिवेणी संगम है | मान्यता के अनुसार श्री राम ने अपने 14 वर्षीय वनवास काल में शिवरीनारायण की यात्रा की थी और यहाँ शबरी के झूठे बेर खाए थे | शबरी के नाम पर इस स्थान का नाम शिवरीनारायण पड़ा | यहाँ स्थित नर-नारायण मंदिर लगभग 12 वीं शताब्दी का है जिसका निर्माण रजा सबर ने करवाया था | इसके ठीक सामने 9 वीं शताब्दी में बना केशव नारायण मंदिर में भगवान विष्णु की अत्यंत प्राचीन प्रतिमा है | जिसके मुख्य द्वार पर भगवान् विष्णु के विभिन्न अवतारों के विवरण उल्लेखित है |
यहाँ 7 वी शताब्दी में बना लक्ष्मेश्वर शिव मंदिर अत्यंत विलक्षण है इसके गर्भ गृह में स्थित शिव लिंग में 1.25 लाख छोटे-छोटे शिव लिंग है | ऐसी मान्यता है की यदि यहाँ भगवान को 1.25 लाख चावल के दाने भोग लगाने से भक्तो की सभी मनोकामना पूर्ण होती है !
शिवरीनारायण: नर नारायण मंदिर
शिवरीनारायण : केशव नारायण मंदिर
तालागांव – यह बिलासपुर से लगभग 27 किमी दूर मनियारी नदी के तट पर स्थित है | तालागांव में देवरानी –जेठानी मंदिर के नाम से विख्यात शिव मंदिर है जिसका निर्माण शरभपुरी शासन की दो रानियो ने करवाया था | लाल बलुए पत्थरो से बना देवरानी मंदिर गुप्तकालीन शिल्प कला जबकि जेठानी मंदिर कुषाण स्थापत्य कला का प्रतिनिधित्व करते है यह दोनों मंदिर ही 4 थीं -5 वीं शताब्दी के मध्य बने है | देवरानी मंदिर के द्वारा पर रूद्र शिव काल पुरुष के 1500 वर्ष पुरानी अद्भुत मूर्ति है | जिसमे इसके 11 अंग विभिन्न जीव जंतुओं की मुखाकृति से निर्मित है जिनमे रौद्र भाव संचारित है |
तालागांव : देवरानी मंदिर
तालागांव : रूद्र शिव
मल्हार- बिलासपुर के मस्तुरी तहसील से लगभग 14
किमी दूर मल्हार पुरातात्विक महत्व का गाँव है | यहाँ खुदाई से प्राप्त अवशेषों, मूर्तियों
, सिक्को आदि 2 री शताब्दी BCE से 12 शताब्दी CE तक के है | भारत के 52 शक्तिपीठों
में से 51वां शक्ति पीठ मल्हार में स्थित है | यहाँ का डीडनेश्वरी मंदिर
विश्वविख्यात है इसमें ऊँचे संगमरमर के आसन पर स्थापित डीडनेश्वरी देवी की प्रतिमा
मूर्तिकला का सर्वोत्तम नमूना है यह मूर्ति अत्यंत कीमती शुद्ध काले ग्रेनाइट की
बनी है इस मूर्ति की विशेषता यह है कि किसी कठोर वस्तु से आघात करने पर ठन –ठन की
ध्वनि उत्पन्न होती है | यहाँ 200 ई.पू. की देश की प्राचीनतम चतुर्भुज विष्णु की
प्रतिमा भी देखी जा सकती है | यहाँ स्थित संग्रहालय में वैष्णव, शैव व जैन
संप्रदाय की प्रतिमाएं रखी हुई है | 1167 ई. में निर्मित केदारेश्वर मंदिर (पतालेश्वर)
महत्वपूर्ण है | जिसका निर्माण सोमराज नामक ब्राम्हण द्वारा कराया गया था |
मल्हार :चतुर्भुज विष्णु
मल्हार : पातालेश्वर मंदिर
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