Sunday 2 December 2012

लो भईया हम भी आ गए ब्लागरी की दुनिया में. बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाती | कितनी कोशिश की कापी में , डायरी में , दिवाल में, फर्श में लिख कर अपने को रोकने की पर नहीं ,यह दिन देखना तो किस्मत में
लिखा ही था शायद , तो आ गए भईया ऑनलाइन |
                                                 नेट का इस्तेमाल तो बरसो से हो रहा है | ऑरकुट और फेसबुक भी बराबर चलता रहा पर ब्लागरी बंदे के लिए नया मैदान है |
खैर नया कुछ भी होता है तो अच्छा ही लगता है मुझे भी अच्छा ही लग रहा है|
मुझे पड़ने के लिए आप सभी का धन्यवाद

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