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Monday, 18 January 2016

सचिन के सन्यास पर मेरी भावनाएं

कौन था वह ? शायद बचपन की एक याद । मेरी बचपन की यादो का साथी या हम सब की । ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि अचानक बस आँखों से झर झर आंसू गिर रहे हों । पता नहीं क्यों दिल से आवाज आ रही है कि मत जाओ। तुम चले जाओगे तो हमारा क्या होगा। सचिन अब मैदान में नहीं आएगा सोच कर भावनाओं का तूफान आ गया। बीते समय की यादें आँखों के सामने फ़िल्म की तरह घूमने लगी। हम सबका पूरी दुनिया में यदि कोई कॉमन दोस्त है तो वो सचिन है । बचपन में क्रिकेट खेलते हुए यदि किसी को सचिन कहा जाता तो उस समय होने वाली गर्व की अनुभूति कइयों में आज भी सिहरन पैदा कर देती है । हंसमुख शख्स क्रिकेट ही जिसके लिए सब कुछ है वो सचिन सभी के दिलो दिमाग पर हमेशा छाया रहा । 24 साल तक मेरे साथ रहा या मैं उसके साथ रहा ऐसा हमेशा लगा मुझे। किसी कंट्रोवर्सी में सचिन का नाम घसीटने की कोशिश की गई तो दिल से आवाज़ आयी नहीं इसको तो छोड़ दो। इतनी भावनाऍ सचिन के साथ जुडी है। दिन भर मैच खेलना हो या रात भर किसी टूर्नामेंट में इन सब का साक्षी है सचिन। पहली बार बैट पकड़ने से आखिरी बार क्रिकेट खेलने तक साथ था सचिन। एक मेंटर एक गार्डियन था हम सबका । क्रिकेट खेलना तो कब का छूट गया मैच भी कभी कभार ही देखता हूँ । फिर सचिन के जाने का इतना दुःख क्यों ? ये सवाल करोडो हिन्दुस्तानियों की तरह मेरे जेहन में है । चाहे वो क्रिकेट खेलते हो या नहीं। शायद सबसे ज्यादा दुःख मेरी पीढ़ी के लोगों को होगा जो अभी 30 के आसपास होंगे। बचपन का हीरो था सचिन । सचिन केवल एक नाम नहीं उसके साथ हमारे बचपन का पागलपन,शरारतें , मासूमियत सभी आ जाते हैं । इसी कारन उसके जाने का इतना दुख है । इतना लिखने के बाद भी क्षमा चाहूँगा कि मै अपनी भावनाए नहीं व्यक्त कर पा रहा हूँ । घर परिवार में किसी प्रिय की मृत्यु से जो शोक होता है उसका अनुभव कर रहा हूँ इस पल । यही तो मेरा ऐसा दोस्त था गुरु था जिससे कभी लड़ाई नहीं हुई मनमुटाव नहीं हुआ । ज्यादा नहीं लिख पा रहा पर इतना कह सकता हूँ भावनाएं सच्चा हैं आंसू सच्चे हैं प्यार सच्चा है। सचिन करोड़ों यादों के लिए दिल से धन्यवाद। तुम भगवान का हम सब के लिए सबसे सुन्दर  तोहफा हो जो हमें सबसे अजीज है।

नोट:यह लेख 16/11/2013 को सुबह 7.30 बजे लिखा गया था। सचिन तेंदुलकर के सन्यास के बाद